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अदिति

अदिति

प्रेषिका : रजनी शर्मा

अदिति पुलिस की ट्रेनिंग पूरी करके अपनी बुआ के यहाँ आई हुई थी। यह शहर भोपाल से 30 किलोमीटर दूर था। अदिति ने भोपाल रेलवे स्टेशन से हैदराबाद जाने के लिए रात को गाड़ी पकड़नी थी। उसका फ़ुफ़ेरा भाई विशाल अदिति को लेकर बस स्टैन्ड आया हुआ था। इतने में विशाल का दोस्त सुनील अपनी सूमो से जाता हुआ दिखाई दिया। उसने उसे आवाज दे कर रोक लिया। उसने पूछा तो उसने बताया कि उसे भी भोपाल जाना था। विशाल ने बताया कि अदिति को भोपाल जाना है, उसे स्टेशन पर छोड़ देना। भला सुनील को क्या आपत्ति हो सकती थी।

रास्ते में सुनील ने अदिति को ध्यान से देखा तो उसे याद आ गया कि वो कॉलेज में उसके साथ पढ़ती थी। उसने अदिति को याद दिलाने की कोशिश की।

"सुनील जी, आप बिना मतलब के परेशान हो रहे हैं ... दोस्ती बढ़ाने का ये भी कोई तरीका है?"

"ओह सॉरी, मुझे लगा आप को याद आ जायेगा !"

"तो लाईन मारने का और कोई तरीका नहीं है आपके पास? वैसे मैं बता दूँ कि मैं पुलिस सब इन्स्पेक्टर हूँ ... और मुझसे डरने की आपको कोई जरूरत नहीं है।"

सुनील हंस दिया, और गाड़ी चलाने मग्न हो गया।

"आपको शायद शिन्दे सर याद नहीं है जिन्होंने आपको क्लास से बाहर निकाल दिया था !"

अदिति ने उसे एक बार फिर देखा... और मुस्करा उठी..."तो जनाब ने मुझे याद दिला ही दिया ... "

उनकी बातों का दौर चल निकला। रास्ते भर अपने विद्यार्थी-जीवन को याद करके खूब हंसते रहे। भोपाल पहुंचने पर सुनील ने पता किया कि गाड़ी सात घण्टे देरी से चल रही है... यह जान कर अदिति परेशान हो गई कि इतना समय कैसे बितायेगी?

"मेरा घर यहां से पास में ही है, बस पांच मिनट की दूरी पर... आप वहाँ आराम कर लें, फिर खाना वगैरह भी खा लेंगे। देखो तीन तो वैसे ही बज जायेंगे।"

अदिति ने कहा कि घर वालों को मेरी वजह से परेशानी होगी... वो जैसे तैसे स्टेशन पर ही समय बिता लेगी। सुनील ने जोर दिया तो वो राजी हो गई। घर जाने से पहले उसने रास्ते से कुछ खाना ले लिया और घर पहुँच गये। सुनील ने ताला खोला और दोनों अन्दर आ गये।

"घर पर तो कोई नहीं है..."

"हाँ, वो सब तो गांव गये हुये है, तीन चार दिन बाद आयेंगे... खैर आप आराम करें।"

सुनील अन्दर जाकर रम की बोतल ले आया और आराम से पीने बैठ गया।

"क्या दारू पी रहे हो ... ?"

"हां यार... थोड़ा सा पी लूँ तो थकान दूर हो जायेगी ... तुम तो नहीं लेती होगी?"

"दोगे नहीं तो कैसे लूंगी भला ... यार तुम तो बौड़म हो ... तुम्हें तो शिष्टाचार भी नहीं आता है।"अदिति ने मुस्कराते हुये कहा।

सुनील बहुत देर से अदिति के बारे में ही सोच रहा था। उसका कसा हुआ बदन, उसकी टी-शर्ट में उभरे हुये उत्तेजक उभार ... पर वो पुलिस वाली थी, इसी वजह से उसकी गाण्ड भी फ़ट रही थी। उधर अदिति भी सुनील जैसे गबरू जवान को देख कर फ़िसली जा रही थी। अदिति को बस यही दारू वाला मौका मिला था ... सोचा कि एक घूंट पीकर उसकी गोदी में बैठ जाऊंगी और नशे का बहाना बना कर उससे चुद लूँगी। सुनील अन्दर से कोक में रम मिला कर ले आया।

"हम्म, स्वाद तो अच्छा है...!" वो पीते हुये भोजन भी करने लगी।

"और लोगी...?"

"हाँ यार, मजा आ गया ... और मुझे नाम से बुला... अपन तो साथ के हैं ना !"

सुनील ने पैग बना दिया और शराब ने कमाल दिखाना शुरू कर दिया। खाना समाप्त करके सुनील ने पूछा,"मजा आया अदिति, खाना मज़ेदार लगा?"

अदिति ने मस्त हो कर अपनी जुल्फ़े झटक कर कहा,"ओ येस, बहुत मस्त लगा !"

अदिति का हाथ सुनील ने थाम लिया था, अब उसने अदिति की पीठ पर सहला कर कहा,"सच कुछ और भी चाहिए तो बोलो..."

"ओह नो सुनील, बस मस्त मजा आ रहा है।"

"अरे बताओ ना, मेरी मेहमान हो, खातिर करने का मौका अब ना जाने कब मिले !"

'और क्या खिलाओगे?" अदिति ने अपनी नजरें तिरछी करके कहा।

"जो आप कहें, कहिये क्या खायेंगी आप?" सुनील ने अदिति का हाथ दबा दिया।

अदिति के जिस्म में एक कसक सी अंगड़ाई ले रही थी, अचानक उसके मुँह से निकल पड़ा,"अभी तो फ़िलहाल, आपका ये खड़ा लण्ड..." उसका कुछ पुलिसिया अन्दाज था।

"यह तो कब से आपके स्वागत में तैयार खड़ा हुआ है, आपको सेल्यूट मार रहा है।"

अदिति का नशा गहरा होता जा रहा था। उसकी चूत भी फ़ड़कने लगी थी। उसे तो एक जवान लण्ड मिलने वाला था।

"जरा मुआयना तो करा दे अपने लण्ड का, जरा साईज़ वाईज़ देखूँ तो..."

सुनील ने तुरन्त अपना लौड़ा बाहर निकाल दिया। अच्छे साईज़ का लण्ड था...

"ये हुई ना बात ... ले मेरी चूत में फ़ंसा कर देख, मादरचोद घुसता है कि नहीं।"

उसके मुख में पुलिस वाली गाली निकलने लगी थी।

"तो जनाब अपनी चूत तो हाज़िर करो ... अभी ट्रायल दे देता हूँ..."

सुनील ने उसे एक झटके से अपनी बाहों में उसे उठा लिया और सामने बिस्तर पर पटक दिया। उसकी जींस और टॉप उतार दिया। कुछ ही देर में सुनील भी मादरजात नंगा खड़ा था।

"चल इसका जरा स्वाद तो चखा दे, आ जा ! दे मुँह में लौड़ा !"

सुनील ने अपना लण्ड उसके मुख में डाल दिया। सुनील ने भी अदिति की कोमल चूत देखी और उस पर झुक गया। अदिति सिहर उठी... सुनील की लपलपाती जीभ उसकी कभी गाण्ड चाट रही थी तो कभी चूत के खड्डे में घुसी जा रही थी। उसका दाना जरा बड़ा सा था, जीभ से उसे हिलाना आसान था। वो आनन्द के मारे अपनी चूत उछालने लगी थी।

"ओह... अब लण्ड खिलाओगे ... चूत को मस्ती से खिलाना कि उसे मजा आ जाये।"

"मां कसम, तुम पुलिस वालों को चोदने में बड़ा आयेगा... सुना है बड़ी टाईट चूत होती है।"

"उह्ह्ह, किस ख्याल में हो, पुलिस तो बदमाशों की मां चोद देती है ... चल रे तू मुझे चोद दे।"

अदिति ने अपनी टांगें चौड़ा दी... उसकी चिकनी चूत पूरी खुल गई।

मेरा लाल सुपाड़ा और उसकी लाल चूत का मिलन कितना मोहक होगा, यह सोच कर ही सुनील तड़प उठा। वो अदिति के नीचे बैठ गया और लण्ड को हाथ में लेकर उसकी चूत से चिपका दिया।

"अब खा भी लो जान, मुँह फ़ाड़ कर गप से खा जाओ।"

अदिति ने देखा सारी सेटिंग ठीक है तो अपनी कमर धीरे से उछाल कर लण्ड चूत में खा लिया और चीख सी उठी।

"हाय राम ... कितना मोटा है... पर मस्त है ... दे जोर से अब !"

सुनील ने अपना लण्ड जोर डाल कर उसे पूरा घुसा डाला। अदिति ने जोर से मस्ती में अपनी आंखें बन्द कर ली। उसके जबड़े उभर आये ... मुख खुला का खुला रह गया।

"चोद डाल हरामजादे ... लगा जम कर ... फ़ाड़ डाल ! तेरी भेन को चोदूँ।"

"अरे ये पुलिस थाना नहीं है, सुनील का मस्त बिस्तर है।"

"मां चुदाई तेरे बिस्तर की, दे हरामी ... घुसेड़ ... और जोर से ... चोद डाल।"

अदिति मस्ती में पागल हुई जा रही थी। वो अपने असली पुलीसिया अन्दाज में आ चुकी थी। सुनील भी इसी आनन्द में डूबा हुआ था। उसका मोटा लण्ड अदिति को दूसरी दुनिया की सैर करवा रहा था। दोनों आपस में गुंथे हुये थे, अदिति की चूत की कस कर पिटाई हो रही थी। वो तो और जोर से अपनी चूत पिटवाना चाह रही थी। अदिति के दांत भिंचे हुए थे, चेहरा बिगड़ा हुआ था, आंखें बन्द थी, जबड़े बाहर निकले हुये थे ... सुनील के हाथ उसके कड़े स्तनों का मर्दन कर रहे थे।

"तेरी मां की फ़ुद्दी ... भोसड़ी वाले ... दे लौड़ा ... मार दे मेरी ... मादरचोद... दे ... और दे ... लगा जोर, फ़ाड़ दे मेरी, तेरी भेन को लण्ड मारूँ ...ईइह्ह्ह्ह्ह्... दे ... जोर से मार !"

सुनील इन सब बातों से बेखबर अन्यत्र कहीं स्वर्ग में विचरण कर रहा था, बस जोर जोर से उसकी चूत पर अपना लण्ड पटक रहा था।

अदिति का नशा आखिर चूत का पानी बन कर बह निकला। उसने एक गहरी सांस भरी और सुनील का लण्ड हाथ में ले कर मलने लगी।

"अरे नहीं अभी इसमें दम बाकी है...।"

"तो दम कहाँ निकालोगे ...?"

सुनील ने पीछे जाकर उसके मस्त पुटठों पर अपने हाथ फ़िरा दिये। अदिति ने उसे मुस्करा कर घूम कर देखा। सुनील ने अपनी कमर आगे करके अपना खड़ा लण्ड उसकी गाण्ड से चिपका दिया। उसके नितम्ब सहलाने लगा। उसकी मांसल जांघें उसे आकर्षित कर रही थी। अदिति उसी मुद्रा में झुकी हुई उसके लण्ड के स्पर्श का आनन्द ले रही थी। उसके चूतड़ों के खुले हुए पट लण्ड को छेद तक रगड़ने का मजा दे रहे थे।

"इरादा क्या है मिस्टर?"

"बस एक बार तुम्हारी सलोनी मांसल गाण्ड बजा देता तो तमन्ना पूरी हो जाती।"

"मुझे जाने देने का विचार नहीं है क्या ? गाड़ी छूट जायेगी !"

"गाड़ी तो सुबह भी जाती है ना, पर ऐसा मौका मिले ना मिले फिर?"

अदिति नीचे घुटनो के बल बैठ गई, लण्ड उसके सामने था।

"तुमने मजबूर कर दिया जानू !"

"मैंने नहीं, मेरे इस लण्ड ने मुझे मजबूर कर दिया !" सुनील ने कहा।

अदिति ने लण्ड को घूर कर कहा," क्यूँ लण्ड मियां, मेरी गाण्ड मारे बिना नहीं मानेंगे आप?"

फिर स्वयं ही लौड़े को हिला कर ना कह दिया।

"तो जनाब लण्ड महाराज मेरी गाण्ड आप जरूर मारेंगे !" फिर उसे ऊपर नीचे हां की मुद्रा में हिला कर अपने मुख में ले लिया। कुछ देर चूसने के बाद अदिति ने क्रीम लेकर अपनी गाण्ड में भर ली, फिर वो हाथों के बल झुक कर घोड़ी बन गई। सुनील ने अपने लण्ड पर भी क्रीम लगा कर अदिति की गाण्ड पर लगा दिया। उसने अदिति का दुपटटा लिया और उसकी कमर पर बांध दिया। उसे पकड़ कर उसने अपने अपना लण्ड अदिति की गाण्ड में घुसेड़ दिया, घुड़सवार जैसे बन कर उसकी गाण्ड को पेलने लगा। फिर उसके हाथ भी कमर के पीछे लेकर बांध दिये और सटासट चोदने लगा।

"अभी तक तो हम पुलिस वाले चोरों के हाथ बांध कर मारा करते थे, तुमने तो मेरे हाथ बांध कर मेरी ही गाण्ड मार दी, भई मान गये तुम्हें !"

सुनील ने अदिति की गाण्ड जम कर मारी, फिर अन्त में उसे सीधी करके तबीयत से चोद भी दिया। अदिति का सारा कस-बल निकल चुका था।

गाण्ड मरा कर अदिति सो गई और सुनील उसी बिस्तर पर अदिति के साथ ही सो गया। सवेरे सुनील की नींद खुली तो देखा अदिति और वो खुद दोनो ही नंगे थे। सुनील ने अदिति को जगाया और सामने उठ कर खड़ा हो गया। उसका सोया हुआ लण्ड हाथी की सूंड की तरह लटक रहा था। सुपाड़ा जरूर चमक रहा था। अदिति ने एक भरपूर अंगड़ाई ली और अपने दोनों बोबे ठुमका दिए।

सुनील बोला,"जल्दी से तैयार हो जाओ !"

पर अदिति की निगाहें सुनील के लण्ड पर ही थी। अदिति को देख कर सुनील का लण्ड फिर से फ़ूलने लगा और फिर से टनाटन हो गया। अदिति उठ कर सुनील के सामने आ गई।

"अब ये महाशय तो मुझे फिर से सलामी दे रहे हैं !"

"तो अदिति सलामी कबूल कर ही लो !"

अदिति एक बार घुटनों के बल बैठ गई और उसके झूमते लण्ड को एक थप्पड़ मार कर कहा,"मियां, तुम तो ऐसे भी खुश और वैसे भी खुश, चाहे अगाड़ी हो चाहे पिछाड़ी, तुमको को तो बस कोई छेद चाहिये, है ना ?"

फिर लण्ड को हिला कर बोली," क्या कहा ...हां, तो लो ये पहला छेद, " उसने अपना मुख खोल कर लण्ड को मुख के अन्दर डाल दिया।

"वाह... क्या रस है ..." फिर उठ कर सुनील से चिपक गई।

"अदिति, देखो मेरा मन फिर से डोल रहा है, चोद डालूंगा !"

"तो क्या हुआ, चोद डालो, गाड़ी तो शाम को भी जाती है।"

और दोनों खिलखिला कर हंस दिये। खिलखिलाहट ज्यादा देर नहीं चली, क्योंकि अदिति की चूत में सुनील का मोटा लण्ड एक बार फिर घुस चुका था। अब मात्र सिसकारियाँ ही गूंज रही थी।
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