प्रकरण - २ "अब सुनीये अपने मुन्ना बाबु की बात....."
मुन्ना जब अपनी मां के कमरे से निकला तब उसका दिमाग एक दम से काम नही कर रहा था। उसने आज तक अपनी मां का ऐसा रुप नही देखा था। मतलब नंगा तो कभी नही देखा था। मगर आज शीला देवी का जो सुहाना रुप उसके सामने आया था उसने तो उसके होश उडा दिये थे। वो एक बदहवाश हो चुका था। मां की गोरी गोरी मखमली जांघे और आल्फोन्सो आम के जैसी चुचीयों ने उसके होश उडा दिये थे। उसके दिमाग में रह रह कर मोटी जांघो के बिच की काली-काली झांटे उभर जाती थी। उसकी भुख मर चुकी थी। वो सीधा अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बन्ध कर के तकियों के बिच अपने सर को छुपा लिया। बन्ध आंखो के बिच जब मां के खुबसुरत चेहरे के साथ उसकी पलंग पर अस्त-व्यस्त हालत में लेटी हुइ तसवीर जब उभरी तो धीरे-धीरे उसके लंड में हरकत होने लगी।
वैसे अपने मुन्ना बाबु कोई सीधे-सादे सन्त नहि है, इतना तो पता चल गया होगा। मगर आपको ये जान कर आश्चर्य होगा की अब से २ साल पहले तक सच मुच में अपने मुन्ना बाबु उर्फ राजेश उर्फ राजु बडे प्यारे से भोले भाले लडके हुआ करते थे। जब १५ साल के हुए और अंगो में आये परिवर्तन को समझने लगे तब बेचारे बहुत परेशान रहने लगे। लण्ड बिना बात के खडा हो जाता था। पेशाब लगी हो तब भी और मन में कुछ खयाल आ जाये तब भी। करे तो क्या करे। स्कूल में सारे दोस्तो ने अंडरविअर पहनना शुरु कर दिया था। मगर अपने भोलु राम के पास तो केवल पेन्ट थी। कभी अंडरविअर पहना ही नही था। लंड भी मुन्ना बाबु का औकात से कुछ ज्यादा ही बडा था, फुल-पेन्ट में तो थोडा ठीक रहता था पर अगर जनाब पजामे में खेल रहे होते तो, दौडते समय इधर उधर डोलने लगता था। जो की उपर दिखता था और हाफ पेन्ट में तो और मुसिबत होती थी अगर कभी घुटने मोड कर पलंग पर बैठे हो तो जांघो के पास के ढीली मोहरी से अन्दर का नजारा दिख जाता था। बेचारे किसी को कह भी नही पाते थे की मुझे अंडरविअर ला दो क्योंकि रहते थे मामा-मामी के पास, वहां मामा या मामी से कुछ भी बोलने में बडी शरम आती थी। गांव काफी दिनो से गये नही थे। बेचारे बडे परेशान थे।
सौभाग्य से मुन्ना बाबु की मामी हसमुख स्वभाव की थी और अपने मुन्ना बाबु से थोडा बहुत हसीं-मजाक भी कर लेती थी। उसने कई बार ये नोटिस किया था की मुन्ना बाबु से अपना लंड सम्भाले नही सम्भल रहा है। सुबह-सुबह तो लग-भग हर रोज उसको मुन्ना के खडे लंड के दर्शन हो जाते थे। जब मुन्ना को उठाने जाती और वो उठ कर दनदनाता हुआ सीधा बाथरुम की ओर भागता था। मुन्ना की ये मुसिबत देख कर मामी को बडा मजा आता था। एक बार जब मुन्ना अपने पलंग पर बैठ कर पढाई कर रहा था तब वो भी उसके सामने पलंग पर बैठ गई। मुन्ना ने उस दिन संयोग से खुब ढीला-ढाला हाफ पेन्ट पहन रखा था। मुन्ना पलाठी मार कर बैठ कर पढाई कर रहा था। सामने मामी भी एक मेगेजीन खोल कर देख रही थी। पढते पढते मुन्ना ने अपना एक पैर खोल कर घुटने के पास से हल्का सा मोड कर सामने फैला दिया। इस स्थिती में उसके जांघो के पास की हाफ-पेन्ट की मोहरी निचे ढुलक गई और सामने से जब मामीजी की नजर पडी तो वो दंग रह गई। मुन्ना बाबु का मुस्टंडा लण्ड जो की अभी सोयी हुई हालत में भी करीब तीन-चार इंच लंबा दिख रहा था अपने लाल सुपाडे की आंखो से मामीजी की ओर ताक रहा था।
उर्मिलाजी (मुन्ना बाबु की मामी) इस नजारे को ललचाई नजरों से एकटक देखे जा रही थी। उसकी आंखे वहां से हटाये नही हट रही थी। वो सोचने लगी की जब इस छोकरे का सोया हुआ है, तब इतना लंबा दिख रहा है तो जब जाग कर खडा होता होगा तब कितना बडा दिखता होगा। उसके पति यानी की मुन्ना के मामा का तो बामुश्किल साढे पांच इंच का था। अब तक उसने मुन्ना के मामा के अलावा और किसी का लंड नही देखा था मगर इतनी उमर होने के कारण इतना तो ग्यान था ही की मोटे और लंबे लंड कितना मजा देते है। कुछ देर तक दोनो ऐसे ही शर्मिन्दगी के अहसास में डुबे हुए बैठे रहे फिर उर्मिला देवी वहां से उठ कर चली गई।
उस दिन की घटना ने दोनो के बिच एक हिचक की दिवार खडी कर दी। दोनो अब जब बाते करते तो थोडा नजरे चुरा कर करते थे। उर्मिला देवी अब राजु को बडा गौर से देखती थी। पजामे में उसके हिलते-डुलते लंड और हाफ पेन्ट से झांकते हुए लौडे को देखने की फिराक में रहती थी। राजु भी सोच में डुबा रहता था की मामी उसके लौडे को क्यों देखती और ताकती रहती थी। ऐसा वो क्यों कर रही थी। बडा परेशान था बेचारा। मामीजी भी अलग फिराक में लग गई थी। वो सोच रही थी क्या ऐसा हो सकता है की मैं राजु के इस मस्ताने हथियार का मजा चख सकुं ? कैसे क्या करे ये उनकी समझ में नही आ रहा था। फिर उन्होंने एक रास्ता खोजा।
उर्मिलाजी (मुन्ना बाबु की मामी) इस नजारे को ललचाई नजरों से एकटक देखे जा रही थी। उसकी आंखे वहां से हटाये नही हट रही थी। वो सोचने लगी की जब इस छोकरे का सोया हुआ है, तब इतना लंबा दिख रहा है तो जब जाग कर खडा होता होगा तब कितना बडा दिखता होगा। उसके पति यानी की मुन्ना के मामा का तो बामुश्किल साढे पांच इंच का था। अब तक उसने मुन्ना के मामा के अलावा और किसी का लंड नही देखा था मगर इतनी उमर होने के कारण इतना तो ग्यान था ही की मोटे और लंबे लंड कितना मजा देते है। कुछ देर तक दोनो ऐसे ही शर्मिन्दगी के अहसास में डुबे हुए बैठे रहे फिर उर्मिला देवी वहां से उठ कर चली गई।
उस दिन की घटना ने दोनो के बिच एक हिचक की दिवार खडी कर दी। दोनो अब जब बाते करते तो थोडा नजरे चुरा कर करते थे। उर्मिला देवी अब राजु को बडा गौर से देखती थी। पजामे में उसके हिलते-डुलते लंड और हाफ पेन्ट से झांकते हुए लौडे को देखने की फिराक में रहती थी। राजु भी सोच में डुबा रहता था की मामी उसके लौडे को क्यों देखती और ताकती रहती थी। ऐसा वो क्यों कर रही थी। बडा परेशान था बेचारा। मामीजी भी अलग फिराक में लग गई थी। वो सोच रही थी क्या ऐसा हो सकता है की मैं राजु के इस मस्ताने हथियार का मजा चख सकुं ? कैसे क्या करे ये उनकी समझ में नही आ रहा था। फिर उन्होंने एक रास्ता खोजा।
अब उर्मिला देवी ने नजरे चुराने की जगह राजु से आंखे मिलाने का फैसला कर लिया था। वो अब राजु की आंखो में अपने रुप की मस्ती घोलना चाहती थी। देखने में तो वो माशा-अल्लाह शुरु से खुबसुरत थी। राजु के सामने अब वो खुल कर अंग प्रदर्शन करने लगी थी। जैसे जब भी वो राजु के सामने बैठती थी तो अपनी साडी को घुटनो तक उपर उठा कर बेठती, साडी का आंचल तो दिन में ना जाने कितनी बार ढुलक जाता था (जबकी पहले ऐसा नही होता था), झाडु लगाते समय तो ब्लाउस के दोनो बटन खुले होते थे और उनमे से उनकी मस्तानी चुचियां झलकती रहती थी। बाथरुम से कई बार केवल पेटीकोट और ब्लाउस या ब्रा में बाहर निकल कर अपने बेडरुम में सामान लाने जाती फिर वापस आती फिर जाती फिर वापस आती। नहाने के बाद बाथरुम से केवल एक लंबा वाला तौलिया लपेट कर बाहर निकल जाती थी। बेचारा राजु बिच ड्राइंग रुम में बैठा ये सारा नजारा देखता रहता था। लडकीयों को देख कर उसका लंड खडा तो होने लगा था मगर कभी सोचा नही था की मामी को देख के भी लंडा खडा होगा। लंड तो लंड है वो कहां कुछ देखता है। उसको अगर चिकनी चमडी वाला खुबसुरत बदन दिखेगा तो खडा तो होगा ही। मामीजी उसको ये दिखा रही थी और वो खडा हो रहा था।
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